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    स्थायी लोक अदालतें

    परिवहन, डाक, तार आदि जैसी सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिए स्थायी लोक अदालतों की स्थापना हेतु विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 को 2002 में संशोधित किया गया था। इनका आयोजन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22-बी के अंतर्गत किया जाता है।

    विशेषताएँ:

    • इन्हें स्थायी निकायों के रूप में स्थापित किया गया है।
    • परिवहन, डाक, तार आदि जैसी सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित मामलों के सुलह और निपटारे के लिए अनिवार्य पूर्व-मुकदमेबाजी तंत्र प्रदान करने हेतु इसमें अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं। किसी भी कानून के तहत समझौता योग्य न होने वाले अपराध से संबंधित किसी भी मामले के संबंध में इसका अधिकार क्षेत्र नहीं होगा। स्थायी लोक अदालतों का क्षेत्राधिकार 1 करोड़ रुपये तक है।
    • किसी भी न्यायालय में विवाद लाए जाने से पहले, विवाद का कोई भी पक्षकार विवाद के निपटारे के लिए स्थायी लोक अदालत में आवेदन कर सकता है। स्थायी लोक अदालत में आवेदन किए जाने के बाद, उस आवेदन का कोई भी पक्षकार उसी विवाद में किसी अन्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार का आह्वान नहीं करेगा।
    • यह संभावित समझौते की शर्तें तैयार करेगा और उन्हें पक्षों को उनकी टिप्पणियों के लिए प्रस्तुत करेगा और यदि पक्षकार किसी समझौते पर पहुँच जाते हैं, तो स्थायी लोक अदालत उसके अनुसार एक निर्णय पारित करेगी। यदि विवाद के पक्षकार किसी समझौते पर नहीं पहुँच पाते हैं, तो स्थायी लोक अदालत गुण-दोष के आधार पर विवाद का निर्णय करेगी।

    स्थायी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक निर्णय अंतिम होगा और सभी पक्षों पर बाध्यकारी होगा तथा स्थायी लोक अदालत के सदस्यों के बहुमत से पारित होगा।